सुनीता तिवारी
मनुष्य ही नहीं हर जीव के जीवन में अच्छा व बुरा वक्त आता है। यह उस जीव पर निर्भर करता है कि वह उस कठिन वक्त को अपनी समझदारी व हिम्मत से कैसे बिताता है। हम यहां किसी रोग के निदान की बात नहीं कर रहे, बल्कि कैंसर नामक राक्षस के डर को कम करने की बात कर रहे हैं। आज जब विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है। इस रोग के निदान के नए-नए उपचार खोजे जा रहे हैं तब भी किसी को कैंसर हो गया है यह सुनते ही आंखों के आगे तुरंत मौत का दृश्य दिखने लगता है। यह सरासर अज्ञानता है। कैंसर के टेस्ट में रिपोर्ट पॉजिटिव भी आ गई है तो भी मनोबल बना रहे इसके लिए हम कुछ कैंसर पर विजय पा चुकी नारियों की आपबीती व डॉक्टर द्वारा दी जाने वाली काउंसलिंग के बारे में बताने जा रहे हैं।
छवि हेमंत
छवि हेमंत ‘ईबीएस कंस्लटेंसी ग्रुप’ की फाउंडर हैं। उन्हें वर्ष 2019 में ब्रेस्ट कैंसर का पता लगा था। दस दिन पहले ही उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर नए व्यवसाय की शुरुआत की थी। साथ ही दो दिनों बाद वे किसी धार्मिक यात्रा पर जाने वाले थे जिसकी पहले से ही बुकिंग आदि की हुई थी। तब छवि जी ने बहुत हिम्मत से काम लिया। इस रोग की बात को जहन में दबाकर वह परिवार के साथ यात्रा पर गईं । वहां से आकर उन्होंने बहुत धीरज से अपनी बहन को, फिर अपने पति को इस बारे में बताया। उनके बच्चे बाहर पढ़ने गए थे, उन्होंने उन्हें भी फोन पर यह खबर नहीं दी थी। अपने पति से उन्होंने यह भी कहा कि “मैं इलाज करवा रही हूं, इस बात को सबको न बताएं।“ उनका कहना है कि ज्यादातर लोग समझदारी से काम नहीं लेते, उल्टा मरीज का मनोबल गिरा देते हैं। रोग से कोई परेशान है तो अगर उसे प्यार भरा हल्का सा स्पर्श मिल जाता है, तो उसका मनोबल बहुत बढ़ जाता है। जैसे उनके पति उनकी ताकत बनकर हमेशा साथ रहे।
छवि जी इलाज के लिए ‘टाटा मैमोरियल हॉस्पिटल’ मुंबई भी गईं। कीमो भी हुई। कीमो से हर कोई जानता है कि शरीर से बाल समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने पहले से ही विग खरीद लिया था। उनके पति उन्हें कहते “परेशान न हो, इलाज के बाद वापस पहले से बाल आ जाएंगे। मगर तुम हर वक्त आई लाइनर लगाकर रहो। पेंसिल से आई ब्रो भी बनाकर रखो।“ अभी कुछ दवाइयां आदि चल रही हैं, पर हिम्मत, समझदारी व परिवार के सहयोग से आज वह इस रोग से निजात पा चुकी हैं।
कैंसर से पीड़ित लोगों से वह कहना चाहती हैं कि ज्यादातर महिलाओं को ब्रेस्ट कैंसर होता है। इसका ऑप्रेशन हो जाता है। सबसे ज्यादा रिसर्च भी इसी पर हो रही है। ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित अमूमन सभी का जीवन बच जाता है। अगर रिपोर्ट पॉजीटिव आ ही गई है, तो अपने को सबसे पहले मानसिक रूप से इससे लड़ने के लिए तैयार करें। शुरू में ही अच्छी क्वालिटी की विग खरीद लें। उस दौरान वीडियो न बनाएं, फोटो न खींचें। किसी भी हालत में खुद को बेचारा न समझें। किस स्टेज का कैंसर है, इस पर ध्यान न दें इलाज के दौरान स्टेज बदल भी जाती हैं। इलाज अच्छे अस्पताल से लें। सीधा डॉक्टर के पास जाएं किसी नीम-हकीम के चक्करों न पड़ें। न ही होम्योपैथिक, आयुर्वेदिक इलाज साथ में लें। घर का साधारण ताजा भोजन दाल, सब्जी, रोटी, चावल, सलाद खाएं। जंक फूड से परहेज रखें। इलाज के दौरान एंटी ऑक्सीडेंट न लें। मीठा कम खाएं। लोगों की तरह-तरह की सलाह पर न चलें, न सोशल नेटवर्क पर पूरा भरोसा करें। किताबें पढ़कर अपने नोट्स बनाएं।
एक साल भरपूर आराम करें अपने मनोरंजन के काम करें किताबें पढ़ें, फिल्में देखें। सारा दिन रात वाले कपड़ों यानी नाइट सूट में न रहें नहा-धोकर मेकअप आदि करके हर रोज तैयार हों। गाने सुनें, जिस धर्म को मानते हैं अपने ईष्ट की अराधना जरूर करें, इससे सोच सकारात्मक होगी। कभी ज्यादा परेशान हैं रोने की इच्छा है, तो जरूर रोएं, इससे मन का बोझ हल्का हो जाएगा। मन में वहम न पालें कि इम्युनिटी कमजोर हो गई है। इलाज के दौरान छह महीने तक कुछ कमजोरी आती है, फिर सब ठीक हो जाता है। हां, पैसा बहुत खर्च होता है, उसके लिए लोन मिल जाता है। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल की साइट पर जाकर देखें यदि इलाज वहीं से शुरू हुआ है तो जनरल केटेगरी के मरीजों को वहां से बड़ी सहायता मिल जाती है।
सुनीता सक्सेना
सुनीता सक्सेना सेंट जोसेफ स्कूल, कोटा में अंग्रेजी की अध्यापिका थीं। उनकी एक बेटी है जिसकी शादी हो गई है। सुनीता जी को छोटी आंत का कैंसर हो गया। वह इतना घबरा गईं कि स्कूल की नौकरी छोड़ दी। कैंसर उन्हें राक्षस की तरह लगने लगा। उन्हें लगता हर पल मौत मेरी ओर खिंची चली आ रही है। इस दुख के साथ परेशानी आई कि इलाज बहुत महंगा है, देखते ही देखते हजारों रुपए पानी की तरह बहने लगे। उनके मन में रह-रहकर आत्महत्या करने का विचार आने लगा कि रोज-रोज मरने से तो एक बार मर जाना बेहतर है। फिर अपनी लाडली बेटी का ख्याल आया, अपने पति का ख्याल आया कि उन पर क्या गुजरेगी। साथ ही आत्महत्या का प्रयास असफल रहा तो हाथ-पैर टूटने की स्थिति और भी खराब हो जाएगी।
पति द्वारा की सेवा व हिम्मत दिलाने का उन पर ऐसा असर हुआ कि वह इस दर्द को ईश्वर की भक्ति करते हुए सह लेती हैं। दुख-तकलीफ को जीवन का हिस्सा मानकर वह हिम्मत से जी रही हैं। आंत का कैंसर होने के कारण उनके पेट की एक ओर कोलोस्टोमी बैग लगा है। जिस कारण वह साड़ियां नहीं पहन सकतीं। कीमो के कारण बाल खत्म हो गए हैं। पर अब उन्हें विश्वास है कि वह एक दिन इस रोग से पूरी तरह ठीक होंगी। विग की जगह उनके खुद के बाल होंगे। सुंदर साड़ियां हैंगरों से उतारकर अपने तन पर लपेटेंगी। तब वह कैंसर पीड़ितों को आपबीती बताकर उनका मनोबल बढ़ाएंगी।
सुनेशा सुनि
सुनेशा सुनि केरल की रहने वाली हैं। उनकी शादी कम उम्र में हो गयी थी। वह दक्षिण दिल्ली में एक जानी-मानी डायग्नोस्टिक लैब में टेकनेशियन हैं। उनकी गोद में जब बेटी आई तो उन्हें ब्रेस्ट कैंसर हो गया सैकंड स्टेज का। वह बहुत रोईं कि मेरी बेटी को अब कौन पालेगा, मैं तो अब मर जाऊंगी। कैंसर की पीड़ा के साथ एक बड़ा दुख आया की नन्ही सी बिटिया जन्म से ही नेत्रहीन थी।
मगर जब कुदरत समस्या देती है, तो हिम्मत भी देती है। यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि वह रोता रहे या हिम्मत से सामने खड़ी समस्या का सामना करे। ईश्वर ने हिम्मत दी सुनेशा ने इलाज करवाया। नौकरी भी करती रही। एक दिन उन्हें पता चला कि उन्होंने कैंसर को हरा दिया है। ईश्वर की कृपा से नौकरी के साथ अपनी लाडली बिटिया को पाल रही हैं। उन्हें कैंसर से मुक्ति मिले बारह साल हो चुके हैं।
रक्षा शर्मा
रक्षा शर्मा जी के हंसते-खिलखिलाते परिवार पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा, जब अचानक एक दिन टेस्ट की रिपोर्ट के रूप में एक बुरी खबर आई कि उन्हें कैंसर हो गया है। उनके दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनके पति प्राइवेट कंपनी में ग्राफिक डिजाइनर हैं। वह नियमित इलाज करवा रही हैं। डॉक्टर ने कहा है कि इलाज काफी हो चुका है, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है। उनके पति उनका पूरा ध्यान रख रहे हैं। सुबह के वक्त बच्चों को स्कूल भेजना, स्कूल से लाना, घर के काम निबटाना सब करते हैं। शाम की शिफ्ट में ऑफिस जाते हैं। कुछ उनके रिश्तेदार उनकी अनुपस्थिति में रक्षा जी को सहयोग करते हैं। मगर वह स्वयं कैंसर के नाम सी ही बहुत डरी हुई हैं। हमेशा रोती रहती हैं कि अब मेरे बच्चों का क्या होगा। वह समझ ही नहीं पा रही हैं कि वह किसी भी खतरे से अब बाहर हैं।
इस वक्त उन्हें काउंसलिंग की बहुत जरूरत है ताकि वह समझ सकें कि हर कैंसर जानलेवा नहीं होता। जैसे उनके पति उनकी तकलीफ में पूरी तरह भागीदारी निभा रहे हैं। बार-बार विश्वास दिलवाते हैं कि अब वह ठीक हैं। सभी के घर के सदस्यों को इसी तरह सहयोग करना चाहिए। इससे मरीज को जल्द स्वस्थ होने व अपनी दिनचर्या में वापस आने में बहुत मदद मिलती है। रिंकू शर्मा जी का कहना है कि हमारा अनुभव इस इलाज के दौरान अन्य मरीजों से मिलकर यही रहा कि रोग का पता लगने के बाद घरेलू इलाज न करें, शर्म के कारण रोग को छुपाएं नहीं, जितना जल्दी से जल्दी अस्पताल जाएंगे, डॉक्टर से इलाज शुरू करवा देंगे, उतनी जल्दी रोग से पूर्णतया मुक्ति मिल जाएगी।
शकुंतला शर्मा
दवा की दुकान पर अचानक ही एक दिलेर-धाकड़ महिला से मुलाकात हुई। वह भी रोबीले गुस्सैल रूप में। बातों-बातों में पता लगा कि उन्हें वर्ष 2008 में ब्लड कैंसर का पता चला था। वह जब मासूम सी बच्ची थीं तब पिता नहीं रहे थे, इसलिए वह इकलौती संतान हैं, कोई भाई-बहन नहीं है। उनकी मां भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके पति उनका बहुत ध्यान रखते थे। वर्ष 2019 में हार्ट फेल से उनके पति की मृत्यु हो गई। उनका इकलौता बेटा अपनी पत्नी के साथ विदेश में रहता है। हाल ही में शकुंतला जी के परिवार का विस्तार हुआ है। वह नन्ही सी बच्ची का दादी मां बनी हैं, उनकी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं है। बेटे-बहू के विदेश में रहने व पति की मृत्यु के बाद दिल्ली में वह अकेली ही रहती हैं। वह सरकारी संस्थान में बड़े ओहदे पर नौकरी कर रही हैं। वह इलाज के लिए अकेली ही जाती हैं।
उन्हें देखकर उनके दबंग व्यवहार से कोई अंदाज नहीं लगा सकता कि वह कैंसर जैसे रोग से ग्रसित हैं। वह दूर-दराज तक भी अकेली ही चली जाती हैं। उनका कहना है कि आए हैं सो जाएंगे राजा रंक फकीर… कबीरदास जी की वाणी में भी स्पष्ट है कि जिस जीव का जन्म हुआ है, वह राजा हो, गरीब हो कोई भी हो उसे एक दिन मृत्यु अवश्य आएगी। फिर मरने से डरना कैसा सड़क पर चलते हुए एक्सीडेंट से जितनी मौतें होती हैं शायद कैंसर से नहीं होतीं। फिर आप सुरक्षित हाथों में हैं, इलाज चल रहा है। फिर भी डर रहे हैं। उनका सोचें जिनको यह रोग है उनका टेस्ट नहीं हो पा रहा या किसी मजबूरीवश वे इलाज नहीं करवा सकते। उनकी तबीयत बीच-बीच में बहुत खराब हो जाती है तो आराम करके वह स्वयं को ठीक करती हैं। उनकी हिम्मत के कारण ही बीमारी उन पर हावी नहीं हुई। शकुंतला जी जैसी हिम्मती नारियां ही समाज के सामने बेहतरीन उदाहरण बनती हैं।
डॉक्टर अमिता गर्ग
डॉ. अमिता गर्ग जी मेरठ एनसीआरएमएस में चिकित्सा अधीक्षक हैं। उन्होंने बताया कि जब किसी भी मरीज को बताया जाता है कि उसे कैंसर है वह परेशान हो जाता है। कुछ मरीज दृढ़ आत्म शक्ति वाले भी होते हैं और परिस्थिति का हिम्मत से सामना करने के लिए तैयार रहते हैं। कुछ मरीज नकारात्मक सोच वाले होते हैं, वह कैंसर को दिमाग में ही बिठा लेते हैं, उन्हें काउंसलिंग की बहुत जरूरत होती है। ऐसे में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हैं और मरीज से कहते हैं कि यह एक बुरा दौर है, यह निकल जाएगा। उन्हें सांत्वना देते हैं कि कैंसर का नाम सुनकर डरें नहीं। कैंसर कई तरह के होते हैं। हर कैंसर लाइलाज नहीं होता। मरीज के साथ-साथ उनके रिश्तेदारों व घर के अन्य सदस्यों को भी यही बात बताते हैं।
“हमारी पूरी कोशिश रहती है कि मरीज को खुश रखा जाए। उसके घर का वातावरण सकारात्मक रहे। उन्हें सलाह देते हैं कि अपने मनपसंद टीवी शो, हलके-फुलके सीरियल व मनोरंजक शो देखें। दिमाग पर बोझ डालने वाले, मार-काट वाले व जासूसी सीरियल न देखें। हम स्वयं उन्हें हमेशा सकारात्मक (पॉजिटिव) मूड में लाने की कोशिश करते हैं। ठीक हुए कैंसर पेशेंट का हवाला देते हैं कि देखो वे सब ठीक हो गए थे और अब खुशहाल जीवन जी रहे हैं। हमारे वैज्ञानिक डॉक्टर बहुत तरह के परीक्षण कर रहे हैं और नई-नई औषधियां ला रहे हैं। उन्हें हिम्मत पर पूरा विश्वास रखने के सलाह देते हैं। हिम्मत और विश्वास रखने वालों की ईश्वर भी मदद करते हैं।“
डॉक्टर सुमन लता
डॉ. सुमन लता जी ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के हीमाटोलॉजी डिपार्टमेंट में साइंटिस्ट हैं। उनका कैंसर के मरीजों को समझाने का तरीका बहुत अच्छा है। वह मरीजों को ज्यादा से ज्यादा वक्त देकर समझाती हैं कि “चलो माना रिपोर्ट पॉजीटिव आ गई है। अब मन को गिरने नहीं देना, अब सोचने का वक्त है कि इससे निजात पाने के लिए क्या किया जाए।“ मरीज की काउंसलिंग की जाए, इस बात पर वह जितना जोर देती हैं, उतना ही परिवार के सदस्यों की काउंसलिंग पर ध्यान देती हैं। वह कहती हैं कि दुख की बात यह है कि अकसर लोग पहले तो कैंसर के नाम से ही डरते हैं, मगर इलाज से कुछ ठीक होते ही इलाज छोड़ देते हैं। समय-समय पर करवाए जाने वाले टेस्ट नहीं करवाते। कुछ समय के लिए ठीक हुई बीमारी के दौरान लापरवाह हो जाते हैं। जैसे शुगर आदि रोगों का उपचार है मगर मरीज हमेशा के लिए ठीक हो जाएगा ऐसा नहीं है, वैसे ही कैंसर का उपचार तो है मगर इसका कोई एक सेल भी कहीं छुपकर बैठ गया तो फिर से हमला कर सकता है इसलिए कैंसर ठीक होने के बाद भी फॉलोअप के लिए जब डॉक्टर बुलाएं अवश्य जाएं।
हर किसी का कैंसर अलग होता है। उसके हिसाब से ही डॉक्टर इलाज बताते हैं किसी को तीन महीने में, किसी को छह महीने में, इसीलिए किसी की बातों में आकर इलाज न छोड़ें। अपना इलाज खुद ही न करने लगें। कुछ लोग घर बैठे ही दवा खाने लगते हैं। टेस्ट के बाद पता लगता है कि अब कितनी दवा की आवश्यकता है। किस हद तक मरीज इससे मुक्ति पा चुका है। इलाज के साथ नियमित काउंसलिंग भी जरूरी है। महिलाएं अधिकतर स्वयं के प्रति लापरवाह होती हैं। कम से कम प्रतिदिन स्वयं को एक घंटा अवश्य देना चाहिए। उन्हें पार्लर जाकर अपने रखरखाव पर ध्यान देना चाहिए। रोज अपनी इम्युनिटी के हिसाब से हलकी-फुलकी एक्सरसाइज अवश्य करनी चाहिए। इससे पॉजीटिव वाइब्स मिलती हैं। सैर करें। बार-बार विचार मन को झकझोड़ते हैं, कोशिश करें अकेले न रहें। अपने मन की बातों को किसी से शेयर अवश्य करें। प्रकृति से जुड़ें। ताजे फल-सब्जियां खानी चाहिए। अपनी हॉबी को डेवलप करें। कुछ अच्छा सीखने, बनाने में स्वयं को व्यस्त रखें। पेंटिंग करें, कुछ लिखें-पढ़ें, सिलें कुछ भी करें। अपना मनोबल बढ़ाकर रखें।
स्मार्ट फोन पर कैंसर की साइट पर विश्वास न करें। अस्पताल के आधिकारिक रूप से मान्य लोगों से ही सलाह लें। गलत लोगों से हमेशा बचकर रहना चाहिए। नियमित डॉक्टर की सलाह पर अम्ल करें। खर्च की चिंता है तो अस्पताल में ‘पेशेंट हेलप केयर डेस्क’ से जानकारी लें। एक सरकारी स्कीम ‘बीपीएल’ मरीजों के लिए है 5 लाख तक की उसमें मदद मिल जाती है। राष्ट्रीय आरोग्य सेवा एम्स जैसे संस्थानों में 5 लाख तक की मदद होती है। थर्ड स्टेज के मरीज काम नहीं कर सकते तो उन्हें भी सरकार से पैसे की मदद मिलती है। एमएसएसओ ऑफिसर से सलाह ले सकते हैं।