अरूण पाल ने 24 वर्ष की आयु में कोरोना की वैक्सिन तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों को परीक्षण के लिए अपना पूरा शरीर दान दे दिया था। इतने कठिन परीक्षणों को झेलने के बाद भी अरूण आज भी इनसानियत की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
सुनीता तिवारी
दुनिया में करोड़ों लोग जन्म लेते हैं, जीवन जीते हैं फिर एक दिन इस दुनिया से हमेशा के लिए रुख्सत हो जाते हैं। कुछ ही दिनों बाद लोग उन्हें भूलने लगते हैं पर कुछ नाम ऐसे होते हैं जो इतिहास बन जाते हैं। यहां हम एक ऐसे व्यक्तित्व अरूण पाल के बारे में बात कर रहे हैं, जिन्होंने मात्र 24 वर्ष की आयु में कोरोना की वैक्सिन तैयार करने के लिए वैज्ञानिकों को परीक्षण के लिए अपना पूरा शरीर दान दे दिया था ताकि कोरोना नाम के राक्षस पर काबू पाकर लोगों की जान बचाई जा सके। सबसे खुशी की बात यह है कि इतने कठिन परीक्षणों को झेलने के बाद भी अरूण हमारे बीच, हमारे साथ हैं, इनसानियत की मदद के लिए हमेशा तैयार।

जय जवान
जनवरी महीने का शुभारंभ चाहे अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक नए साल की खुशियों से होता है, मगर जनवरी की 26 तारीख को देशभक्ति की भावना से भरे हर भारतीय का मन प्रसन्नता से भरा होता है। 26 जनवरी की परेड की खासियत होते हैं देश की सीमा पर फौलादी सीना ताने खड़े हमारे देश के जवान, जिन्हें लोग देश के कोने-कोने से सैल्यूट करते हैं। बहुत से नवयुवक व नवयुवतियां चाहकर भी देश की रक्षा के लिए सीमा पर नहीं पहुंच सकते परंतु दिल में भरे देशभक्ति के जज्बे को पूरा करते हुए देश की भलाई के लिए कुछ ऐसा करते हैं कि सभी के लिए नई मिसाल बन जाते हैं।

कोरोना की वैक्सिन का परीक्षण
दुनिया भर के लोग युगों से वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई वैक्सिन के प्रयोग से महामारियों का सामना करते आए हैं। पर इस बार कोरोना तो हम सबको अंदर तक हिला गया। ऐसा लगा जैसे पूरी दुनिया पर किसी भयानक राक्षस का हमला हो गया हो। आज चाहे हम इसके नाम से परिचित हैं, दिलों से डर कम हो चुका है, मगर कई लोग और उनके करीबियों ने इसी कोरोना नाम के राक्षस के कारण अपनी जान गंवाई। बहुत से लोग इसके चंगुल में फंसे मगर किस्मत अच्छी थी बच निकले। आज पीछे मुड़कर देखते हैं तो रुह कांप जाती है, उफ, कितने बुरे और खौफनाक दिन थे वे। तब इनसान ही इनसान से डरता था। जीवन के आगे कोई धन-दौलत, हीरे-जवाहरात आदि कुछ मायने नहीं रखते थे। हर किसी को प्यारी थी तो सिर्फ और सिर्फ अपनी व अपनों की जान। ऐसे में वैक्सीन आने का इंतजार तो हर कोई कर रहा था पर परीक्षण के लिए कोई सामने नहीं आ रहा था। बात वही थी, सभी को जान प्यारी थी।
एक युवक और उसका जज्बा
हरियाणा (अंबाला) के रहने वाले 24 वर्षीय अरूण पाल ने औरों की जान बचाने के लिए अपनी जान वैज्ञानिकों के हाथ में दे दी। ढेरों असफल परीक्षण समय-समय पर हुए। आखिर वैज्ञानिकों के हाथ सफलता लग ही गई। अरूण की जान बच गई साथ ही जाको राखे साइयां मार सके ना कोय़ की कहावत भी सच हुई।
वैक्सीन का सफल परीक्षण
अरूण पाल के शरीर पर पीजीआई एमआर, रोहतक के चकित्सकों द्वारा को-वैक्सीन के परीक्षण किए गए। जिसे बाद में विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त हुई। ये परीक्षण लगभग 200 दिनों तक चले। जिससे कि अरूण की जान कई बार जोखिम में आई। हम आए दिन किसी की जान लेने, किसी को दुर्घटनाग्रस्त स्थिति में तड़पता छोड़कर भागते या किसी भगदड़ में सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए लोगों को भागते-दौड़ते देखते-सुनते आए हैं। पर विरले ही होते हैं जो दूसरों की जान बचाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं। अरूण भी उन्हीं में से एक हैं। उनसे जब इस हिम्मत के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि एक जिंदगी कभी भी करोड़ों जिंदगियों से बढ़कर नहीं हो सकती। अगर एक जान जाने से करोड़ों जानें बचती हैं तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। साथ ही आगे भी देश की भलाई के लिए किसी भी परीक्षण के लिए मेरे शरीर की जरूरत पड़ी तो मैं पीछे नहीं हटूंगा।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी
कोरोना के परीक्षण के लिए जीते जी अपना शरीर दान करना बहुत बड़ा काम था। इसके अलावा भी अरूण समाज सेवा करते रहते हैं। पूरे कोरोना काल में मजबूर लोगों की मदद की, उन तक भोजन पहुंचाया। वह पौधारोपण व सफाई अभियान में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं। आपातकालीन स्थितियों में कई बार सिविल अस्पताल व अन्य अस्पतालों में जाकर बहुत बार रक्तदान किया। रक्तदान वह समय-समय पर करते ही रहते हैं। सामाजिक कार्यों के साथ-साथ खेल-कूद में भी वह आगे रहते हैं। वह राइफल शूटिंग व मैराथन के खिलाड़ी हैं। खेलों में नेशनल लेवल पर हरियाणा का नाम उन्होंने कई बार रोशन किया है।
पेड़-पौधों से है विशेष स्नेह
अरूण पेड़-पौधों की बहुत सेवा करते हैं। उन्हें पेड़-पौधों से विशेष प्यार है। इस वर्ष वह अपने जन्मदिन पर अमेरिका गए हुए थे तो उन्होंने अपने घर वालों से कहा कि उनके इस खास दिन को यादगार बनाते हुए वे सभी पौधे लगाएं। उन्होंने इस एक विशेष दिन में चार सौ से अधिक पौधे लगाए।
परिवार, दोस्तों और रिश्तेदारों के हैं शुक्रगुजार
एक बार हरियाणा में बाढ़ आ गई थी, तब आसपास के लोगों के साथ बांध बनाते हुए अरूण के पापा पुल से बंधे मोटे रस्से में उलझ गए थे। उनकी गर्दन और दोनों बांहें बंध गई थीं। मगर ईश्वर की कृपा से बच गए। सिर्फ एक उंगली कट गई थी। पापा की बहादुरी से ही अरूण को प्रेरणा मिली। बचपन से ही देश सेवा का जज्बा था। आर्मी में भर्ती के लिए तीन बार कोशिश की पर सफलता नहीं मिली। अब जब देश पर संकट आया तो अरूण ने परीक्षण के लिए एफिडेवेट दे दिया। शारीरिक जांच में जब फिट पाए गए तब उनकी मम्मी बहुत रोने लगीं। बहुत रोका। मगर अरूण मानने वाले न थे। उन्होंने अपने जन्मदिन पर पहला परीक्षण कराया और अपने ईष्टदेव से मांगा कि वैक्सीन का परीक्षण सफल हुआ तो यही मेरा बर्थडे गिफ्ट होगा। वह परीक्षण के लिए हमेशा अपने खर्च से या दोस्तों की गाड़ी से गए। सरकार से कोई मदद नहीं ली। जब अरूण पर वैक्सीन का परीक्षण हो रहा था तब अरूण के मित्र, पड़ोसी, घर के लोग, रिश्तेदार सभी बहुत परेशान थे सभी भगवान से प्रार्थना कर रहे थे कि सब ठीक हो। यही कारण है कि अरूण उन सभी लोगों के शुक्रगुजार हैं। उनका बहुत एहसान मानते हैं।
अरूण हुए सम्मानित
0 दादा साहेब फाल्के आइकन अवॉर्ड फिल्म्स आर्गेनाइजेशन, लाइफ स्टाइल आइकोनिक अवॉर्ड
0 सेंट मदर टेरेसा युनिवर्सिटी (यूएसए) ऑनरेबल डॉक्टरेट अवॉर्ड
0 अखंड भारत गौरव अवॉर्ड
0 महानगर ग्लोबल एचीवर्स अवॉर्ड
0 राष्ट्रीय गौरव टॉप 30 आइकन अवॉर्ड
0 मुख्यमंत्री हरियाणा ने दिया सैल्यूट हरियाणा अवॉर्ड
0 गृहमंत्री हरियाणा ने दिया बेस्ट सोशल वर्कर अवॉर्ड
0 ग्लोबल आइकन अवॉर्ड, एंटी करप्शन फाउंडेशन ऑफ इंडिया
0 इंटरनेशनल प्राइड अवॉर्ड, नीति आयोग
0 इंडिया न्यूज द्वारा सैल्यूट हरियाणा
0 अशोका यूथ अवॉर्ड
0 यूएनवी अवॉर्ड
0 यूथ चेंजमेकर अवॉर्ड
0 बेस्ट आइकन ह्यूमन बीइंग
इनके अलावा भी उन्हें कई अवॉर्ड मिले हैं। काश, सभी नौजवानों दिलों में कुछ ऐसा ही देशभक्ति का जुनून भर जाए। फिर विपदा आई भी तो जल्द ही छूमंतर हो जाएगी।