भय और निर्भय के बीच की महीन लकीर को गहरायी से समझते हुए डर का विश्लेषण कीजिए और उसके कारकों को पहचानिये। डर के कारण अपने उद्देश्य से न रुकें।
प्रशांत दीक्षित
भय और निर्भय के बीच की महीन लकीर को गहरायी से समझने के लिए जिन सूत्रों से भय का आभास
होता है उनके अवयवों पर पहले गूढ़ता से परीक्षण निश्चय ही भय को समझने की कड़ी है। भय के कई
पर्यायवाची शब्द हैं जैसे की डर, आतंक , खौफ, दहशत, जिनका प्रसंगो के मुताबिक उपयोग किया जा
सकता है। भय हमेशा अज्ञात इकाइयों से ही उभरता है। साधारण शब्दों में जिन इकाईओं को हम समझने
में विफल होतें हैं वही हमारे जीवन में भय का सूत्र बन जाती हैं। कई उदाहरण दिए जा सकते हैं जैसे की
भूत प्रेत का डर , चोर लुटेरों का डर या हमारी चोरी पकड़ी जा सकती है इसका भी डर। अलबत्ता साधारण जीवन में चोट लगने से लेकर मौत की संभावनाए हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं और भय का सूत्र बन जाती हैं।
सकारात्मक दृष्टिकोण
मिलिट्री एविएशन में, जो की मेरे जीवन का अहम् अंग रहा है, हम भय को एक सकारात्मक दृष्टिकोण से
देखते थे। उसका निदान निकालना ही पड़ता है। वह हमारी उद्देशो और कार्यप्रणाली में रुकावट नहीं बन
सकता था क्योंकि हमारा अस्तित्व और सार्थकता हमारे उद्देश्य में प्राथमिक थे। डर कई रूपों में उभरता
था। दुश्मन के आक्रमण की धमकियां, दुश्मन पर हमारे आक्रमण के रास्तें में रुकावटें और वह सब
परिस्थितियां जो बाधाए बनकर खड़ी हो जाएं। कभी कभी घोर अंधेरी रात को जब मूसलाधार बारिश हो
रही हो, पहाड़ों के बीच अटके हुए हमारे जवानो को रसद पहुँचाना टाला नहीं जा सकता था। उसी तरह
दुश्मन के बेसेस में बम और रॉकेट्स से लदे फाइटर जहाजों को उनकी एयरफील्ड पर ही तबाह करना
अनिवार्य होता था। क्योंकि हमारी असफलताए हमारे अपने बेसेस पर अटैक ला सकती थी। इन अवस्थाओं में उद्देश्य को पूरा करने के रास्ते निकाले जाते थे। घुप अँधेरी रातें, भयभीत मौसम, दुश्मन का एयर डिफेन्स राडार, दुश्मन की एंटी एयरक्राफ्ट तोपें और एयर मिसाइल और दुश्मन के फाइटर जहाज हमारे भय का कारण बन सकते थे। इन सब अड़चनों को पार करके मिशन के उद्देश्य को पूरा करना एक
चक्रव्यूह से कम नहीं था।
न भुला पाने वाला किस्सा
मेरे एयरफोर्स जीवन के कुछ हादसे मैं अभी तक नहीं भुला पाया हूँ। 4 दिसंबर 1971 , जब पाकिस्तान के
फाइटर जहाजों ने हमारे बेसेस पर अटैक किया तो यह निश्चय था कि इंडियन एयरफ़ोर्स को जवाबी कार्य
करने से अब कोई रोक नहीं सकता। हालाकिं इस अभियान की पूरी संभावनाए थी और हम सब काफी तैयारी कर चुके थे। लेकिन जब मुझे एक बॉम्बर जहाज में पाकिस्तान के सरगोधा एयर बेस पर बॉम्बिंग
मिशन के लिए नामित किया गया तो मैं एक संछिप्त समय के लिए जरूर एक मानसिक द्वन्द से गुजर
गया। यह प्रक्रिया एक मीटिंग से शुरू हुई जिसमे हमारे कमांडिंग अफसर ने करीब शाम के सात बजे हमें
बुलाया और जिसमे यह बताया कि बेस के दूसरें बॉम्बर स्क्वाड्रन में सरगोधा के बॉम्बिंग मिशन के लिए
एक एयर क्रू की कमी है और आप लोगो में से कौन जाने को तैयार है। हम सबने अपने हाथ उठा दिए
क्योंकि यही हमारी निहित परंपरा थी। और मैं चुना गया इसके बावजूद कि इस बी58 बॉम्बर जहाज को
मैंने पिछले पांच वर्षो से उड़ाया ही नहीं था और जिसकी अंदरूनी बनावट, मेरे बैठने की जगह और मिशन के तौर तरीके मेरे वर्तमान पीआर7 बॉम्बर जहाजों से एकदम अलग ही नहीं बल्कि हट के थे। और सबसे मुख्य मुद्दा था कि मैंने इस बड़े अंतराल में एक भी बम नहीं गिराया था। इन सारी दुविधाओं का
समाधान सिर्फ जानकारी से ही संभव था। मेरे पास सिर्फ एक घंटा था और इन सीमाओं को लांघने के
लिए मुझे कम से कम एक घंटे की उड़ान ट्रेनिंग और कुछ दिनों अध्ययन की गहरी आवशयकता थी। वह
मेरे पास नहीं थे, लेकिन था मेरे पास 3000 घंटो का उड़ान का अनुभव और याददाश्त जिनकी सहायता
से मुझे इस मिशन को पूरा करना और साथ ही साथ सीने में उभरते भय पर अंकुश लगाना था। मैं एक
घंटे तक अपने आपको कैसे संचालित करना उस पर नोट्स लिखने लगा और जब यह व्यक्तिगत योजना
समाप्त हुइ तब मैंने उड़ान की योजना को केंद्रित करके पूरे मिशन की रूपरेखा खींची। सारी आने वाली
अड़चनों को उड़ान के नक़्शे में निशानो से दर्शाया जिससे की याददाश्त पर कम दबाव पड़े। मिशन पूरा
सफल हुआ, 8000 पौंड के बम पूरी निपुणता से गिराए गए जब घडी की सुई ठीक रात के दो बजे दिखा
रही थी जैसा कि मेरी मिशन योजना थी। साथ ही साथ, दुशमन की गोलियों को अपने जहाज की ओर
आते हुए देखते हुए हम अपने बेस की ओर चल पड़े। लेकिन हमारा अभियान अभी समाप्त नहीं हुआ था
और एक नए दर के साये ने हमें घेर लिया। दुश्मन के जहाजों की बमबारी से हवाईपट्टी में गड्ढे हो गए
थे और हमारे पास इतना ईंधन नहीं था कि हम और किसी बेस में जा सकें। फिर पुराने अनुभव और
जानकारी के बलबूते पर हम लैंडिंग करने में सफल रहे। इस मिशन की सफलता से प्रभावित होकर
इंडियन एयरफोर्स ने मुझे वीरता पुरस्कार, वायुसेना मेडल से सम्मानित किया।
भय पर विजय पाएं
वैयक्तिक जीवन में भी कई ऐसी स्थितिओं का सामना करना पड़ा उनमें से एक का विवरण उल्लेखनीय
है। दिल्ली जयपुर हाईवे पर मैं परिवार सहित कोहरे और मूसलाधार बारिश की चपेट में आ गया जबकि
एक गंतव्य स्थान पर पहुंचना टल नहीं सकता था। लेकिन मैंने हथियार नहीं डाले और गाड़ी की सीमायें
और अपनी निपुणता को ध्यान में रखकर उद्देश्य पूरा किया।
मेरा सन्देश है – डर का विश्लेषण कीजिए और उसके कारकों को पहचानिये। कोई डर आपको आपके
उद्देश्य से नहीं रोक सकता। हाँ कानून की सीमायें पहचानना न भूलें।