जिंदगी का एक नया पड़ाव

तीन साल से ज्यादा जेल में रहने के बाद अपनी जिंदगी को फिर से एक नए और बेहतर मोड़ पर पाना सौभाग्य की बात है

अखिलेश भारती

मैं उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का रहने वाला हूँ। मैं पिछले 20-22 सालों से दिल्ली में परिवार के साथ रह रहा हूँ, मैंने दिल्ली से ही अपनी 12वीं कक्षा कि पढाई की है और अब मैं ऊ.प. बोर्ड से अपनी आगे की पढाई कर रहा हूँ | किशोरवस्था किसी भी बच्चे की जिंदगी का ऐसा समय होता है, जिसमे बच्चे की सोच का विकास होता है। इस उम्र में जब मैं था तो मै बाहर की दुनिया को जानने के लिए बहुत बेताब था, मुझे लगता था कि अब मैं बड़ा हो गया हूं और अपनी मनमर्जी कर सकता हूँ।


किशोरवस्था में, मैं खुद अपनी इच्छाओ, जरुरतो और अपने आप को ठीक तरह से समझ नहीं पाया था।
यह उम्र जिंदगी का एक नया पड़ाव होता है, जो मुश्किलो और चुनौतियों से भरा होता है इस उम्र में मुझे
पढाई की टेंशन होती थी तो किसी से दिल टूट जाने का दर्द भी होता है।

भयानक दौर
मैंने तिहाड़ जेल, दिल्ली में एक विचाराधीन कैदी के रूप में 3 साल, 1 महीने और 6 दिन बिताये हैं
क्योंकि कोर्ट ने जमानत देने से मना कर दिया था। 3 साल बाद जब मैंने हाई कोर्ट में बेल लगवाया तो
मुझे बेल मिल गई। यह सब तब हुआ जब मैं 18 से 24 साल के बीच था।

जेल हमेशा से एक भयानक जगह रही है चाहे वह कहीं भी हो। जेल में, मैं लगभाग पूरे दिन बैरक में ही
बंद रहता था। अब तक की मेरी सबसे खराब सजा थी लगभग 3 साल, 1 महीने और 6 दिन एक ही
बैरक में बिताना। जेल में मुझे ज़मीन पर सोना होता था सिर्फ एक पतला कंबल और दरी मिलती थी
और हमें तकिया और अच्छा खाना पानी नहीं मिलता था |

तीन साल बोलने में तो यूं ही निकल जाते हैं। लेकिन 3 साल तक आपको जेल मे वही सब करना होता
है जो आप पहले दिन से कर रहे हो जैसे वही अकेलापन, बेबसी, वही भयानक वातावरण और वही
रोज़ाना गार्ड की डंडो की आवाज से सुबह उठना और फिर प्रशासन के नज़रो में सब कुछ करना।
मैंने 3 साल बाद अपनी गलती को तो सुधार लिया मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कानून और
इंसाफ का ऐसा खेल मैंने कहीं नहीं देखा था और अब इसी कारण मेरी आवाज भी धीरे-धीरे खामोश हो
चुकी है।

मैंने जो गलती की ही नहीं थी उसके बदले जो मुझे 3 साल की सजा मिली जिस कारण मेरी पूरी जिंदगी ही
बदल गयी। मैं एक इंसान हूं, मेरी इच्छाएं सीमित नहीं असीमित है। मै अभी समाज को और अच्छे स्तर
पर समझना चाहता हूँ।


नया मोड़

मेरा संस्था, टायसिया फाउंडेशन से जुड़ने का यही मुख्य कारण था कि मैं अपने आप को अच्छे स्तर पर
जान पाऊं और अपनी आगे की ज़िंदगी को बेहतर करूं। टायसिया फाउंडेशन में मेरे कई साथी हैं| मुझे वे
सभी पसंद हैं, उन सभी के बात-चीत करने और किसी विषय के बारे में बताने का एक अलग ही तरीका
है।

टायसिया फाउंडेशन मुझे मेरी सभी कमियो के बावजूद स्वीकार और साथ ही साथ उत्साहित भी करती है। यह नए विचार और सुझाव को खुले दिल से स्वीकार करते है। अनलर्ण फैलोशिप से जुड कर मैंने यहाँ पर महिलाओं से जुड़े मुद्दे, शिक्षा और संस्कृति, आदि बहुत कुछ सिखा है। मैं इस पेशे को चुन कर बहुत खुश हूँ। यह एक ऐसी जगह है जहाँ मुझे रोज़ नयी नयी चीज़ें सीखने और समझने को मिलती हैं, जिससे मुझे बहुत खुशी होती है। खाली समय में हम सभी मिलकर गेम्स, सिंगिंग करते हैं। यहाँ पर सभी लोग बहुत ही मिलनसार हैं, वह मुझे और अपने बीच की दूरी मिटाकर मुझे सहज महसूस कराते हैं।

मैं अभी सैकंड चान्स फैलोशिप का फैलो हूँ। इसमें मैं प्रिसनर-मैंटल हैल्थ पर काम कर रहा हूँ। मेरे टीम की सबसे अच्छी बात है उनके बताने और समझाने का तरीका, उनकी शिष्टता, उनके बात-चीत करने का
तरीका, उनकी नई सोच और विचारो के प्रति उनका खुलापन और सम्मान। मैं इनका साथ पाकर भाग्यशाली हूं। मुझे इनकी टीम का हिस्सा बनकर बहुत ख़ुशी मिली और मुझे एहसास होता है की मैं
यहाँ से अपना जीवन बेहतर कर सकता हूँ। मैं अपने विकास की गतिविधियो को यहा पर बढ़ावा दे
सकता हूँ।

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