मैं दिमाग में कचरा नहीं रखता

आज के दौर में जहां चार वर्ष के बच्चों को भी कहते सुना जाता है कि मुझे टेंशन है, ऐसे में हंसी के फव्वारे लाना और दुखी आत्माओं को हंसाना कोई छोटी बात नहीं। कोई वक्त ऐसा भी आता होगा जब उनके खुद के शरीर और दिल में दुख का दरिया हिलोरें ले रहा होता होगा। तब कैसे वह सामान्य बने रहकर तारीफ बटोर लेते हैं। ऐसे ही कोई आम से खास नहीं हो जाता कुछ तो राज छुपा होता है। आइए, लोकप्रिय हास्य कवि व लेखक पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा से पूछ लें खुश रहने के कुछ उपाय, जिनसे दिल रहे खुश, दिमाग रहे दुरुस्त।

सुनीता तिवारी

हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा जब हरियाणवी अंदाज में कहते हैं,‘‘चार लाइना सुना रिहा हूं…’’ बस, उनके इतना कहते ही बिना आगे की बात सुने ही लोगों की हंसी छूट जाती है। और जब वह असल में सुनाना शुरू कर देते हैं तो लोग पेट पकड़कर हंसने लगते हैं। मजे की बात यह है कि सबके खिलखिलाकर हंसने पर भी सुरेंद्र शर्मा सामान्य ही बने रहते हैं उनके चेहरे पर हंसी नहीं आती। जानते हैं वह हंसी कैसे रोकते हैं, उन्होंने एक राज की बात बताई कि मैं अपनी शादी का दिन याद कर लेता हूं, बस, सारी हंसी छूमंतर हो जाती है। यही है उनका एक खास अंदाज…. पर क्या वह कभी दुखी नहीं होते होंगे।

तकलीफों की जगह दिमाग में नहीं

हकीकत तो यह है कि हर प्राणी जो जन्म लेता है उसके जीवन में खुशियां और गम समय-समय पर आते ही हैं और सुरेंद्र जी भी कई कष्टों, कई दुखों से गुजरे हैं पर वह तकलीफों को अपने दिमाग में रखकर हारकर रुके नहीं, लिखते रहे, मंच पर जाकर लोगों के दिलों तक उतरते रहे। दुख के बारे में उन्होंने बताया कि सबकी जिंदगी में दुख आते हैं। मगर सब सोच पर निर्भर है दुख को दिमाग में रख लो या उसके साथ ही एक रास्ता निकालकर जीवन जी लो।

वह अमेरिका गए तो इतने बीमार हुए कि चार महीने अस्पताल में भर्ती रहे। हार्ट अटैक आया। कई बार ऑपरेशन हुए फिर हार्ट में स्टंट डला। एक बार भारत में ही इतनी बुरी सड़क दुर्घटना हुई कि कूल्हे की हड्डी ही निकल गई। गाड़ी को तोड़कर उन्हें बाहर निकाला गया। रिश्तेदार व मित्र पूछते कि यह कैसे हो गया, तो भी मजाकिया अंदाज में ही कहते, ‘’दोबारा एक्सीडेंट कराकर बताऊं क्या?’’ ऐसी बहुत सी तकलीफें उनके भी जीवन में आईं मगर तकलीफों को उन्होंने दिमाग पर हावी नहीं होने दिया। क्योंकि वह दिमाग में कचरा नहीं रखते। किसी से कोई उम्मीद नहीं रखते।

मस्त रहने का राज

सुरेंद्र शर्मा जी को आए दिन देश-विदेश के मंचों पर कार्य़क्रम प्रस्तुत करने होते हैं। वह आज भी दो जोड़ी कपड़े और एक जोड़ी जूते ही रखते हैं। एक समय था जब कमीज का कॉलर मैला हो जाता था धोकर सुखाना कठिन होता तो वह कॉलर पर पाउड़र लगाकर पहन लेते थे। वह कभी भी डिजाइनर कपड़े नहीं पहनते। पहले कपड़े प्रेस भी करने का झंझट नहीं था, कपड़ों को धुलाई के बाद तह करके किसी भारी चीज के नीचे दबाकर रख दिया जाता था, प्रेस किए कपड़ों जैसा ही आभास होता था। आज लोग तीस-तीस कमीजें रखते हैं, वे भी ड्राई कलीन की हुई चाहिए।

उन्होंने बताया कि “सगे भाई के पास एक अतिरिक्त कार है तो दूसरा भाई दुखी रहने लगता है। अपनी कार का आनंद नहीं लेता, दूसरे की कार की जलन में जलता है। पहले के दौर में सब गरदन ऊपर करके आसमान में हवाई जहाज को उड़ते हुए देखकर प्रसन्न होते थे। अब हर कोई हवाई यात्रा की उम्मीद रखता है यही उम्मीदें बाद में मानसिक संतुलन खराब करती हैं। आज एसी और कूलर में रहकर भी हाय गरमी कहते हैं, आज से 30-35 साल पहले लोग बिना पंखा चलाए मजे से छत पर सो जाते थे।

“पहले एक कमरे के घर में मेहमान आ गए तो सभी जमीन पर गद्दा डालकर सो जाते थे, आज 8-8 कमरे हैं तब भी मेहमान आ जाएं, तो कहां रखें सोचते हैं। पहले लड़की के विवाह के वक्त देखते थे कि भरा-पूरा परिवार हो, कोई समस्या आने पर बात घर की घर ही रहेगी। बच्चे घर में बड़ों की गोद में उनसे संस्कार लेकर पलते थे। अब देखते हैं लड़की का विवाह वहां करेंगे जहां घर में लड़के के अलावा कोई हो ही नहीं। आज मोबाइल फोन सबसे बड़ा दुख का कारण है, इसने अपनों को दूर और परायों को पास किया है। पहले लोग रसोई में भोजन करते थे। आज डाइनिंग टेबल पर ही सब एक ही वक्त में भोजन नहीं करते। एक साथ बैठ भी जाएं तो अपने-अपने मोबाइल में लगे रहते हैं। पहले सुख-सुविधाएं आज जितनी नहीं थीं पर संतुष्टि थी। आज लालसाएं बड़ी हैं तो दुख और परेशानियां ज्यादा हैं। अधिक पाने के मोह जाल में इनसान जकड़ता जा रहा है।”

जब सुरेंद्र जी कॉलेज में पढ़ते थे, तब एक लड़का क्लास में ऐसा था कि जिसको सभी छेड़ते थे। सुरेंद्र जी भी उसका मखौल उड़ाते हुए कविताएं बनाते, तब दोस्तों ने ही कहा था कि तुम तो रेडियो या मंच पर कविताएं सुनाओ तुम्हारी कविताएं बहुत मजेदार होती हैं।

बस, फिर धीरे-धीरे वह मशहूर होने लगे। खुश रहने का राज बताते हैं कि वह आज के वक्त में भगवान राम जी से कहते हैं कि आपने मुझे बहुत कुछ दिया है, चाहे तो कुछ सुख-सुविधाएं वापस ले लें पर मुझे बस संतुष्टि का दान दे दें।

हंसी का कारखाना हैं दवाइयों के जानकार भी हैं वह

हरियाणा के नांगल चौधरी गांव व महेंद्रगढ़ जिले में जन्मे और पुरानी दिल्ली में पले-बढ़े सुरेंद्र जी का पुश्तैनी काम आयुर्वेदिक दवाइयां बनाना था। खारी बावली में कारखाना था। स्कूल से घर आकर पढ़ाई करने के बाद वह अकसर कारखाने में चले जाते थे।

उनके पिताजी कभी खाली बैठना पसंद नहीं करते थे। वह सुरेंद्र जी से कहते कि चलो, दवाइयां पैक कर दो। फिर गोलियां आदि बनाने लगे। बचपन से ही देखते-देखते दवाइयां बनाना वह सीख गए। तब दवाइयों की मार्केटिंग तक भी उन्होंने की। अब वह काम बंद हो गया है मगर उन्हें दवाइयों के बारे में इतनी जानकारी हो गई है कि वह किसी डॉक्टर से कम भी नहीं हैं।

इसके अलावा दिल्ली के संत परमानंद अस्पताल के वह वाइस प्रेसिडेंट हैं प्रतिदिन पूरा दिन वहीं होते हैं। वरिष्ठ नागरिक बनकर घर बैठकर धूप सेकने या आराम करने के बजाय वह समाज सेवा करना अच्छा समझते हैं। इसीलिए प्रतिदिन सुबह ही घर से निकल जाते हैं, लोगों की समस्याएं दूर करते हैं। दिल्ली के एक बड़े टेक्निया कॉलेज के भी वाइस प्रेजीडेंट हैं। सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेट के सदस्य हैं और भी कई संस्थाओं के साथ कार्य़रत हैं साथ ही कवि मित्रों की निजी तौर पर भी मदद करते हैं। 

अपनी मृत्यु की खबर पर भी सामान्य बने रहे

एक दिग्गज कलाकार सुरिंदर शर्मा पंजाब के जाने-माने कॉमेडियन, लेखक और शायर थे। कुछ रोज पूर्व उनके देहांत की खबर को जल्दबाजी में एक न्यूज पोर्टल पर लगाया गया। खबर की छानबीन किए बगैर हास्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा की फोटो उस खबर के साथ लगा दी गई। उसके बाद अन्य चैनलों पर भी खबर की पड़ताल किए बगैर ही खबर चलने लगी। अपने कविता पढ़ने के खास अंदाज से वर्षों से सुरेंद्र शर्मा ने देश ही नहीं विदेशों में भी इतनी ख्याति पाई है कि खबर चलने की देर थी कि फोन की घंटियां घनघनाने लगीं।

तब सुरेंद्र शर्मा जी को सोशल मीडिया पर अपना एक वीडियो बनाकर डालना पड़ा। वह बोले, ‘’प्रिय दोस्तो, मैं सुरेंद्र शर्मा हास्य कवि जिंदा धरती से बोल रहा हूं। आप यह न सोचें कि मैं ऊपर जा चुका हूं। न्यूज पोर्टल ने गलत खबर छाप दी थी। पंजाब के जिस कलाकार की मृत्यु हुई है खबर तो उसकी छाप दी और फोटो मेरी लगा दी। मैं उनके परिवार के प्रति अपनी संवेदानाएं प्रकट करता हूं। और जो मुझे संवेदनाएं देना चाहते हैं उनसे मेरी प्रार्थना है कि कुछ साल अभी इंतजार करें। अभी कुछ साल तो मुझे आप लोगों को काफी हंसाना है। अब इससे ज्यादा अपने जिंदा होने का सुबूत क्या दूं। आप लोग मस्त रहें, स्वस्थ रहें और तंदुरुस्त रहें।‘’

कुछ ही देर में बदल गया सब कुछ 

सुरेंद्र शर्मा से बताया कि यह तो भगवान का शुक्र है कि खबर चलते वक्त मैं किसी सम्मेलन आदि में नहीं गया हुआ था। घर पर घर वालों के साथ ही था। नहीं तो सोचकर डर लगता है कि घर में किस तरह कोहराम मच जाता। कोहराम मेरे चाहने वालों में भी काफी मचा क्योंकि फोन को लगातार कान से लगाए रखकर सुनना पड़ रहा था। एक के बाद एक फोन की झड़ी ही लग गई थी।

लोग बस, एक बार मेरी आवाज फोन पर सुन लेना चाहते थे। हाल तो यह था कि मित्र फोन पर मेरी आवाज सुनते ही फफक-फफककर रोने लगते। फिर थोड़ी देर बाद फोन करते। और ना जाने किस सदमे में थे कि उस रोज ही दिल की हर बात कह देना चाहते थे। जब मामला हद से ज्यादा बिगड़ गया तो अपने जिंदा होने का सुबूत देने के लिए वीडियो बनाना पड़ा। वीडियो सोशल मीडिया पर डालकर आधी रात को फोन को स्विच ऑफ करके सोना पड़ा। क्योंकि कुछ ही देर में बहुत कुछ बदल गया था।

पर कुछ लोगों का कहना था कि मृत्य की झूठी खबर फैल जाए तो उम्र लंबी हो जाती है। 95 साल की बूढ़ी मां से यह बात बड़ी मुश्किल से छुपाई। घर वालों ने तो जिंदा होने की खुशी में देर रात तक पार्टी कर डाली। वैसे ऐसी गलत खबर ने बड़ी तादाद में लोगों की आंखों से गर्म आंसुओं की धारा बहा दी।

जबकि शर्मा जी ने हमेशा लोगों को हास्य कविताएं सुनाकर उनकी आंखों से खुशी के आंसू ही छलकाए हैं। हमारी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह वर्षों तक स्वस्थ रहें, लोगों को हास्य कविताएं सुनाएं और खूब हंसाएं।

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