किरण एलजीबीटीक्यूआईए+ कम्युनिटी से हैं, उन्होंने समाज के तानों को झेलते हुए ही अपनी एक अलग पहचान बनाई है। आज वह एक ऐसी शिक्षिका हैं जिन्होंने कई सौ लोगों यहां तक कि पुलिस वालों को भी गलत-सही की पहचान कराकर शिक्षित किया है। जो भी लोग अपने जीवन को कोसते हैं, जीने की इच्छा खो चुकते हैं, उनकी वह मदद करती हैं, उनका साहस बढ़ाते हुए, उन्हें नई राह सुझाती हैं। उनके प्यार भरे व्यवहार के कारण जीवन से निराश हो चुके लोगों की जीने की तमन्ना फिर जागृत हो जाती है। तो चलिए, देर किस बात की, किरण जी से हुई कुछ बातचीत आप तक भी पहुंचा दें….
सुनीता तिवारी
पुरुष और महिला समाज को स्वीकार्य हैं। कुदरत की बनाई रचनाओं में किन्नर भी हैं, समलैंगिक भी हैं। उन्हें भी सम्मान दें, उन्हें भी उनके हक मिलने चाहिए। इन्होंने दूसरों पर आश्रित रहना लगभग छोड़ दिया है। पर समाज आज भी पूरी तरह जागरुक नहीं हुआ है। कहीं सुना था कि ‘हिजड़ा’ शब्द आज गाली सा लगता है जबकि यह फारसी का शब्द है जिसका अर्थ है, आत्मा की खोज। महाभारत का शिखंड़ी, विष्णु भगवान का मोहिनी रूप, शिव का अर्धनारेश्वर रूप युगों से पूजे गए हैं। मगर हमारे देश में किन्नर को सम्मान नहीं मिलता। जबकि एक्टिंग, मॉडलिंग, शिक्षा, राजनीति आज हर जगह काम कर रहे हैं किन्नर। आज वह दुखभरी जिंदगी जीने पर मजबूर नहीं हैं, ना ही मृत्यु के बाद उनका पहले के समान अपमान ही होता है।
जानी-मानी किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने फिल्मों, स्टेज, पूजा स्थलों और सबसे ज्यादा लोगों के दिलों में जगह और अपनी एक अलग पहचान बना ली है। लक्ष्मी जी को देखो और देखते ही जाओ, कितनी ममतामयी छवि है उनकी। रुद्राणी छेत्री ने अपने समाज के लिए कितनी सेवा की है। फिल्म में काम किया है, वह एक्टविस्ट हैं और जानी-मानी मॉडल भी। चंद नाम ही नहीं हैं बहुत से नाम हैं जो काबिले तारीफ हैं, उन्हीं में से एक नाम है किरण।

छोड़ दीं वे गलियां
किरण ने लड़के के रूप में जन्म लिया था, पर मन से स्वयं को लड़की मानती थीं अब वह अपनी पहचान ट्रांसजेंडर मानती हैं। उन्होंने प्लस टू तक पढ़ाई पूरी लगन से की। लगभग 16 वर्ष की कमतर उम्र में उन्होंने अपनी मर्जी से ही अपना घर छोड़ दिया। 28 वर्षीया किरण अंडेमान-निकोबार की रहने वाली हैं। वहां समाज की काफी पाबंदियां थीं, साथ ही बाहर निकलने से काम की संभावनाएं अधिक होंगी यह सोचकर ही वह अकेली ही दिल्ली चली आईँ। यहां आकर भी लोगों की घूरती निगाहें, अमानीय व्यवहार मिला। तब किराए पर घर नहीं मिलता था। साथ ही सबसे बड़ी समस्या थी उनके पास ‘आई डी प्रूफ’ नहीं था। ‘आई डी कार्ड’ बनवा भी लो तो वह पुरुष या नारी के रूप में ही बनता था। किसी ने घर किराए पर दिया भी तो महंगा देते थे। फिर वह नाज फाउंडेशन से जुड़ीं। वह पिछले ग्यारह वर्षों से नाज फाउंडेशन, दिल्ली में कार्यरत हैं। समय-समय पर लेक्चर व क्लासेस देती हैं। जिन समस्याओं को वह झेलती रही हैं, वही समस्याएं अब दूसरों की सुलझाती हैं।
लोग ही तो हैं जो तंग करते हैं
अब जमाना बदल चुका है, पड़ोसी को पड़ोसी के सुख-दुख से कुछ लेना-देना नहीं होता। फिर भी कई लोगों की सोच नहीं बदली है। भले ही काफी पढ़-लिख जाएं मगर रहते गंवार ही हैं। जैसे पुरुष इनसान है, महिला इनसान है, वैसे ही किन्नर भी इनसान हैं। वह भी सबकी तरह खाना खाते हैं, उनका खून भी लाल है, तो उन पर बातों के बाण चलाने से उन्हें भी दर्द होता है, वे भी दुखी होते हैं, यह क्यों नहीं लोग समझते। जबकि शास्त्रों में स्पष्ट लिखा है कि करनी का फल तो भोगना ही होता है। अकसर स्कूल के दिनों से ही कोई बच्चा किन्नर है, गे है या लेस्बियन बस, सबकी बुल्ली का हर दिन शिकार होता है। रोज गलत सुनना पढ़ता है, रोज गलत सहना पड़ता है।
माता-पिता स्कूल में अच्छे संस्कार पाने, ज्ञान पाने भेजते हैं फिर भी अकसर उस एक बच्चे को शिकार बना लिया जाता है। कभी किसी ने सोचा है कि उस बच्चे पर क्या बीतती होगी। इसी तरह की रैगिंग के कारण हर वर्ष कई बच्चे आत्महत्या तक कर लेते हैं, जो भविष्य के लिए न जाने कितने ही सपने सजाकर पढ़ने के इरादे से आए थे। ऐसे में सहन करने वाले को ही लोगों की तीखे बाणों को नजरअंदाज करने की सलाह दी जाती है। हकीकत तो यह है कि परेशान करने से उन लोगों के, उनके घर के, माता-पिता द्वारा दिए बुरे संस्कार ही दिखते हैं। उनसे बस, इतना ही कहना है कुदरत के बनाए इनसान पर हंसने से पहले कई बार जरूर सोचना चाहिए कि यह भी कुदरत की बनाई रचना है। यही पड़ोसी और रिश्तेदारों को भी सोचना चाहिए। हमारे समाज में पहले की अपेक्षा जागरुकता आई है, पर अभी और भी लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता है।

राज्यों के साथ गांवों में भी शिक्षा जरूरी
किरण मेट्रो पॉलिटियन सिटी में कई सौ लोगों को शिक्षित कर चुकी हैं। साथ ही राजस्थान भी गई थीं। उनका कहना है कि हर छोटी-बड़ी जगह में लोगों को जागरुक करने की आवश्यकता है। जैसे विदेशों में स्कूल में ही शिक्षित कर दिया जाता है। वे एलजीबीटीक्यूआईए+ लोगों को सामान्य लोगों की नजर से ही देखते हैं। हमारे यहां की तरह एकटक घूरते ही नहीं जाते, खीं-खीं कर हंसते नहीं हैं। किरण नाज फाउंडेशन के द्वारा अलग-अलग संस्थाओं, स्कूलों-कॉलेजों, कॉरपोरेट सेक्टर, दिल्ली पुलिस को एलजीबीटीक्यूआईए+ और कम्युनिटी के लिए संवेदनशीलता के प्रति जागरुक करती हैं। सेक्स में सुरक्षा का ज्ञान देती हैं। एचआईवी के बारे में सचेत करती हैं। वह काउंसलिंग भी करती हैं और ट्रेनिंग भी देती हैं। उनसे लोग सवाल पूछते हैं वह समाधान करती हैं। जो सामने से न पूछने में झिझक महसूस करते हों, उन्हें बेनाम खत के रूप में लिखकर प्रश्न पूछने का भी मौका दिया जाता है। पहले धारा 377 क्रिमीनल एक्ट के दायरे में आता था अब पुलिस और एलजीबीटीक्यूआईए+ के बीच की दूरी के बारे में पिछले सात साल से वह जागरुक कर रही हैं।
सरकार से अपील
किरण का मानना है कि हमारे आपके कहने से ज्यादा सरकार की बात का असर होता है। वे दूसरों की खिल्ली उड़ाने वालों को सजा देने का प्रावधान बनाएं। ट्रांसजेंडर बच्चे को स्कूल-कॉलेज में सुरक्षित माहौल मिल सके ताकि वह भी सम्मान से पढ़ सके। कुछ ऐसी वेलफेयर स्कीम हो, ताकि उनका बुढ़ापा आसानी से कट जाए। जैसे और लोगों के लिए वृद्धाश्राम होते हैं, ट्रांसजेंडर के लिए भी होने चाहिए। ट्रांसजेंडर जैसे-तैसे अपना जीवन जी लेते हैं। मगर वृद्ध हो जाने पर बहुत मजबूर हो जाते हैं।
किरण की पसंद
किरण को फुरसत के समय बागबानी करने का बहुत शौक है। थोड़ा पानी दो, खाद दो हंसकर पौधे स्वागत करते हैं। उन्हें लगता है कि सबसे अच्छे दोस्त हैं वे। उन्हें हरियाली बहुत पसंद है। अलग-अलग तरह से खाना बनाना उन्हें पसंद है। ट्रैकिंग की खास शौकीन हैं। किरण ने लोगों के दुख दूर करके उन्हें सम्मान से सुरक्षित जीवन जीने की कला सिखाना ही अपना शौक बना लिया है।

मुझे चाहिए समाधान
किरण ने एलजीबीटीक्यूआईए+ ग्रुप के लिए काफी काम किए हैं। उन्हें समाज में उनके हक दिलवाए हैं। बहुत से लोग होते हैं, जो अपने ही सेक्स के बारे में या समाज के सवालों से परेशान होते हैं। जीवन को सही तरीके से जीने के लिए कुछ सवाल किससे पूछें, कैसे पूछें एक झिझक होती है। ऐसे में नाज फाउंडेशन ने एक फोन नंबर जारी किया है। आप सोमवार से लेकर शनिवार तक प्रश्न पूछ सकते हैं। समय प्रातः 10 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक है।
संपर्क करें हेल्पलाइन नंबर: 011-47504630, 88003291176