कभी ख़ुद के साथ बैठ कर चाय पियो और बातें करो

ना जाने क्यों अक्सर हमारी चाहतों और लोग क्या कहेंगे में से लोग क्या कहेंगे ज्यादा ज़रूरी हो जाता है

हर्षित सिंह

हम सबकी ज़िंदगी में एक ऐसा वक़्त ज़रूर आता है जब हम अपना पूरा आत्म विश्वास खो देते है।

पहले सब कुछ आसान लगता है, वो सब एक मज़ाक़ लगता है पर असल में धीरे धीरे वही मज़ाक़ आपको मारने का काम करता है ।

कितने पतले हो तुम? कुछ खाया करो, घर का सारा ख़ाना कुत्ते बिल्ली और बंदरों को ही खिला दिया जाता है। तुम्हें कुछ खाने को नहीं मिलता, कपड़े लगते है मानो हेंगर में टांगें गये हो। 

बचपन से ले कर अब तक ये सब कुछ रोज़ सुनना होता है क्योंकि मेरा बॉडी टाइप स्किनी है (एक ऐसा शारीरिक ढाँचा जो आम शरीर से पतला हो)।

दूर भागने लगा

आप ये सब कुछ सुन कर इग्नोर कर सकते है पर एक वक़्त ऐसा आता है जब ये सब ताने बाने आपको भीतर ही भीतर मारने लगते है। 

मेरे साथ भी यही हो रहा था। वो भी बहुत कम उम्र में। मेरा आत्म विश्वास मर चुका था, मुझे डर लगने लगा था हर एक इंसान से, अपने दोस्तों से, घर वालों से, रिश्तेदारों से, अजनबियों से भी। 

काफ़ी कम उम्र में एक वक़्त ऐसा भी आया जब मैंने सबसे मिलना छोड़ दिया सिर्फ़ इसलिये कि वो मेरा मज़ाक़ उड़ायेंगे, कभी कभी मुझे लड़की बोल कर मुझ पर हँसेंगे। 

आपके अपने दोस्त और घरवाले आपका मज़ाक़ उड़ाते है, और आप उनको रोके तो वो यही बोलते है अरे सिर्फ़ मज़ाक़ ही तो है। पर असल में जब आपको सबसे ज्यादा आत्म विश्वास की ज़रूरत होती है उनका किया हुआ वही मज़ाक़ आपको कहीं ना कहीं पीछे खींच रहा होता है।

मैं इतना परेशान हो गया था कि जो भी कुछ कहता, वो मैं मान लेता, वजन बढ़ाने वाले पाउडर, दवाई, कितने सारे मेडिकल चेकअप करवाने लगा।

वो दिल को छू लेने वाली बात

और ये सिलसिला रुक ही नहीं रहा था। मगर उसी दौरान किसी ने मुझसे एक बात कही जिसने सब कुछ बदल दिया।

“तुम्हारे लिए दुनियाँ में सबसे ख़ूबसूरत कौन है?” 

मैंने जवाब दिया, “मेरे दादा दादी, नाना नानी।” वो बोले, “जब वो सबसे खूबसूरत हैं तो तुम बदसूरत कैसे हुए? ये शरीर, इसका रोम रोम, कतरा कतरा उन्हीं से तो बना है। जो शरीर तुमको मिला है वो उन्हीं से मिला है तो वो उनके जितना ही ख़ूबसूरत और पवित्र हुआ ना?” 

मैं चुप हो गया। बहुत समय बाद मैं मुस्कुराया था। मुझे ख़ुद के इस शरीर से प्यार हुआ था। किसी से सिर्फ़ बात करना सब कुछ सही कर सकता है ये सच है। 

ख़ुद से प्य़ार

शेमिंग सिर्फ़ दूसरे ही नहीं करते अक्सर हम ख़ुद से भी ख़ुद की शेमिंग करते है। जो ज्यादा ख़तरनाक है। उससे निपटना बहुत ज़रूरी है। 

और ये सबसे ज्यादा आम है। आज कल के बच्चों में कम उम्र में नैगेटिविटी का घर कर जाना उनके साथ लंबे समय तक रह जाती है। इसलिए उनसे बहुत सोच समझ कर ही कुछ बोले या उनसे मज़ाक़ करे।

मैंने ख़ुद को एक तोहफ़ा दिया था। एक बड़ा सा शीशा जिसमे मेरा पूरा शरीर दिख सके। 

समाज ने ना जाने कितने कवरस लगा दिये हैं इस पर कि हम अपने ख़ुद के शरीर से ज्यादा उन कपड़ों को देखते है।

मैंने ख़ुद से प्रॉमिस किया है इस पतले दुबले शरीर, जिसमे ना जाने कितने मार्क्स है, घाव है उससे बात करूँगा उसे प्यार करूँगा, अपने शरीर में मैं दादा दादी को देखूँगा अपनों से बात करूँगा।

इस शरीर को बिना किसी  कवर के देखना बहुत ज़रूरी है।

“मेरा शरीर एक पवित्र किताब की तरह सुंदर है 

ये काला गोरा पतला लंबा मोटा छोटा कैसा भी हो सकता है 

मगर इस किताब की एहमियत हमेशा सबसे ज्यादा

इस किताब की क़ीमत हमेशा सबसे ज्यादा

आयतों और श्लोक से भरी ये किताब हमेशा सबसे ज्यादा पाक है”

स्कूलों के लिए मेसेज

मुझे लगता है स्कूलों में भी इस बात के लिए एक अलग विभाग होना बहुत ज़रूरी है जहां बच्चे अपनी बात रख सके, उनसे सब कुछ बता सके। 

सिर्फ़ शेमिंग ही नहीं असॉल्ट, हरासमेंट जैसी ना जाने कितने ही बातें है जो स्कूलों में होती है पर ऊँची दीवारों से बाहर नहीं आती। अंदर ही अंदर बच्चों को मारती हैं।

ये एक पहल बहुत ज़रूरी है। हम सब अपनी ज़िंदगी में इतना व्यस्त है तो आम बात है कि हम बच्चों को सुन नहीं पाते। या वो हमसे सब कुछ बता नहीं पाते। 

ऐसे में एक ऐसा विभाग जो सिर्फ़ यही सब दिल से सम्भाले। बच्चो से खुल के बात करे। एक ऐसा सेफ स्पेस तैयार करे जहां बच्चे सब कुछ, कुछ भी बात कर सकें।

बाक़ी आप भी उनके साथ समय ज़रूर बिताएँ। 

बच्चो का नैगेटिविटी में होना सबसे ख़तरनाक है। 

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