ज़िंदगी एक कहानी की तरह है, जिस में हर मोड़ अपने साथ एक नए एहसास का हिस्सा लेकर आता है। पर ये कहानी तभी मुकम्मल होती है, जब हम अपनों को याद रखते हैं, जो अब हमारे बीच नहीं हैं। शायद यही ज़िंदगी का सच है … उनका जाना एक अंत नहीं, एक नई शुरुआत है।
नेहा दुसेजा
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“बेटा, चाय पिएगी? थक गई होगी ना … तू रुक, मैं बना देता हूँ।“
अक्सर कॉल पर पापा यही पूछते थे जब मैं अपने मायके से घर आती थी। घर आकर गरम-गरम चाय और एक हफ्ते की सारी गप्पे बैठकर पापा के साथ शेयर करती थी। या फिर मेरे जन्मदिन पर मुझसे ज़्यादा वो उत्साहित रहते थे। जब एक या दो नहीं, बल्कि दो बैग भर कर ड्रेस आती थीं, जैसे मैं घर की राजकुमारी हूँ।
व्हाट्सऐप पर अपने-आप नए लिखने के आइडियाज वॉइसनोट में भेज देते थे। एक कहानीकार होने के नाते मेरी हर कहानी का हिस्सा बनते थे और मेरी हर कहानी को मुझसे ज़्यादा सुनते थे।
साल 2022 में मेरी शादी हुई। और अलग बात यह थी कि मेरे ससुर मेरे सबसे अच्छे दोस्त बन गए। मुझे याद है जब मैंने पहली बार इस घर में कदम रखा था। जब पापा से ज़्यादा उन्होंने दोस्त बनकर उंगली थामी थी। मेरी मुसीबत को मुझसे पहले फेस किया। कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। खामोशी पढ़ लेना … ऐसी हजार चीज़ें सिर्फ़ एक बेस्टफ्रेंड ही कर सकता है।
पता है, उन्हें बात करना बहुत पसंद था। दिन भर सबके पास बैठकर या तो नए नुस्खे या किसी रेसिपी की कहानी हम सब सुनते थे। और फाइनेंस की चिंता तो जैसे कभी की ही नहीं। लगता था, दुनिया चलाने के लिए पैसे तो चाहिए होते होंगे, पर उससे ज़्यादा यह प्यार से चलती है। कभी महसूस ही नहीं हुआ कि ज़िंदगी में गिरना क्या होता है … क्योंकि हमारे गिरने से पहले हर बार वो हमारे सामने खड़े हो जाते थे।
पिछले 4 महीनों में हमारी ज़िंदगी एक पॉज बटन पर आकर रुक गई थी, जब उन्हें पैरालिटिक अटैक आया। वो बोलने वाला इंसान, जो दिन भर बैठकर कुछ ना कुछ कहानी सुनाते थे, फिर चाहे वो ज़िंदगी की सीख हो या किसी नए खाने की रेसिपी के किस्से। अचानक से वो चेहरा खामोश हो गया था। जो आँखें आज तक हम सबको समझाती थीं, अचानक हम सब मिलकर भी उन आँखों की हजारों चिंताएं और बातें समझ नहीं पाते थे।
फिर 80 दिन आईसीयू में बिताने के बाद, डॉक्टर ने अपनी ड्यूटी पूरी करते हुए “आईएम साँरी” कह दिया।
पर पता है, हम इंसानों में एक बहुत खूबसूरत फितरत होती है। हम अपनों को बचाने के लिए आखिरी साँस तक उनका साथ नहीं छोड़ना पसंद करते। लेकिन जो अपने हिस्से में जितने पल लिखवा कर आया है, उससे ना कम जी सकता है, ना ज़्यादा।
और 4 महीने बाद, जब वो हमारे बीच नहीं रहे … तब महसूस हुआ कि जब कोई जाता है ना … वो अकेला नहीं जाता। अपनी फैमिली में हर इंसान में अपना कुछ ना कुछ हिस्सा छोड़ कर जाता है।
“मूव ऑन!” ये वो दो अल्फाज़ हैं, जो सांत्वना के नाम पर पूरी दुनिया उस फैमिली को देती है, जो एक भारी दौर से गुज़र रही होती है। लेकिन क्या सच में किसी के जाने के बाद मूव ऑन करना इतना आसान होता है? खैर, हम सब अपनी-अपनी ज़िंदगी में रोज़ एक नया काम उठाकर बैठते हैं, जिससे हम खुद को कामों में उलझाए रख सकें।
मैं, जो एक कहानीकार हूँ, वापस कहानी लिखना शुरू कर चुकी हूँ। वापस स्टेज शो करना शुरू कर चुकी हूँ। लेकिन मुझे लगता है, जैसे पहले वो मेरी हर कहानी का हिस्सा हुआ करते थे, शायद अब वही मेरी अगली कहानी होंगे।
हर नया साल अपने साथ कुछ अच्छे और कुछ मुश्किल लम्हों का पैकेज लेकर आता है। आगे बढ़ते रहना … इसी का नाम तो ज़िंदगी है।
ज़िंदगी एक कहानी की तरह है, जिस में हर मोड़ अपने साथ एक नए एहसास का हिस्सा लेकर आता है … कभी खुशी का तो कभी दुख का। पर ये कहानी तभी मुकम्मल होती है, जब हम अपनों को याद रखते हैं, जो अब हमारे बीच नहीं हैं, पर हर पल हमारे साथ हैं, हमारे दिल की धड़कनों में, हमारी यादों के किसी कोने में।
और शायद यही ज़िंदगी का सच है … उनका जाना एक अंत नहीं, एक नई शुरुआत है।